Indian soil types and crops Hindi|भारतीय मिट्टी के प्रकार और फसलें

नमस्कार दोस्तों studyknown ब्लॉग पर आपसभी का स्वागत है। दोस्तों आजके ब्लॉग पोस्ट पर हम Indian soil types and crops यानि भारतीय मिट्टी के प्रकार और फसलें के बारे में जानने वाले है। दोस्तों जैसा की हम जानते है की मिट्टी कई परतों से मिलकर बनी होती है। जिसमे सबसे ऊपर मिट्टी के छोटे छोटे कर्ण होते है।  

और, मिट्टी की यह परत ही पौधे की वृद्धि एवं फसलों के लिए बहुत आवश्यक होती है। इसके साथ मिट्टी में सड़े-गले हुए पैड़ पौधे तथा जीवों के अवशेष भी पाये जाते है, जिसे ह्यूमस कहा जाता है। और, चट्टानों में उपस्थित खनिज़ तथा मिट्टी के छोटे छोटे कर्ण जब ह्यूमस में मिल जाता है, तो पेड़ पौधो को जीवन प्रदान करती है।

“मिट्टी / मृदा संसाधनों का महत्व”

  • मृदा एक अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन है,
  • जो विशेष रूप से भारत और इसकी आस पास की,
  • पड़ोसी कृषि प्रधान देशों में देखने को मिलते है।
  • इसके साथ, अधिकांश खाद्य पदार्थ,
  • जैसे चावल, गेहूं, दालें, फल, सब्जियां,
  • और भी कई महत्वपूर्ण पदार्थ,
  • प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी से ही प्राप्त होती हैं।  
  • और, देखा जाये तो मिट्टी हमें जलाऊ लकड़ी, रबर, रेशे आदि भी देती है।
  • तथा, फूल, घास, दूध, मांस, और अंडे जैसे खाद्य पदार्थ भी,
  • अप्रत्यक्ष रूप से इसी मिट्टी से ही प्राप्त होती हैं।

Soil erosion and Indian soil types

  • मिट्टी एक ऐसा तथ्यों है जो हवा और बारिश के संपर्क में आने पर ही,
  • अपनी ऊपरी परत को आसानी से हटा या धोया देता है।
  • और, इस स्थिति को मिट्टी के कटाव के रूप में भी जाना जाता है।
  • और, मूल रूप से मिट्टी के आवरण, बहता पानी और हवा की,
  • शक्तिशाली घटक के माध्यम से ही स्थान परिवर्तन करती है।
  • इसके साथ भारत में मिट्टी के कई प्रकार रूप भी देखने को मिलते है।
  • और, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद,
  • यानि ICAR ने भारतीय मिट्टी को आठ समूहों में बांटा है।
  • जैसे, जलोढ़ मिट्टी, लाल मिट्टी, काली / रेगुर मिट्टी, लेटराइट मिट्टी,
  • पर्वतीय मिट्टी, मरुस्थलीय मिट्टी, लवणीय / क्षारीय मिट्टी और दलदली मिट्टी।  

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Alluvial soils | जलोढ़ मिट्टीयां

  • जलोढ़ मृदा मुक्ख रूप से हिमालय से निकलने वाली,
  • नदियों के द्वारा लाई गई अवसादों के निक्षेपों से बनी होती है।
  • और, इसी जलोढ़ मिट्टी को कछारी मिट्टी भी कहा जाता है।
  • और, यह मिट्टीयां नदियों के बहाव के कारन आती है,
  • तथा नदी घाटियों, बाढ़ का मैदान तथा डेल्टा क्षेत्रों में फैल जाती है।
  • और, यह जलोढ़ मृदा को भारत के उत्तरी मैदान में,
  • विकास के रूप में भी अधिक पाया जाता है।
  • और, इस मिट्टी / मृदा का विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किमी. तक होता है।
  • इसीलिए भारत में इस मृदा का विस्तार सबसे ज्यादा है।
  • इसके साथ यह मृदा भारत के तटीय मैदान,
  • और, प्रायद्वीपीयो भारत के डेल्टा क्षेत्रों में भी पाई जाती है।
  • और, इस मिट्टियों में सबसे ज्यादा चुना तथा पोटाश की मात्रा देखने को मिलते है।
  • तथा, इस मिट्टियों में फास्फोरस, नईट्रोज़न और वनस्पति के अंश की कमी होती है।
  • परन्तु यह मिट्टी धान, गेहू, तिलहन, गन्ना,
  • सब्जी और जुट आदि के लिए उपयुक्त होती है।
  • इसके साथ, जलोढ़ मिट्टीयां भरत के असम घाटी, गुजरात के तटी मैदान,
  • महानंदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी के डेल्टा भागों में,
  • तथा, गंगा की मैदान में पाई जाती है।

Description of Red soils in Indian soil types | लाल मिट्टीयां

  • लाल मिट्टीयों का विकास भारत की दक्कन के पठार के,
  • पूर्वी और दक्षिणी भाग वाले कम वर्षा वाले उन क्षेत्रों में होते है,
  • जहां पे रवेदार आग्नेय चट्टानें पाई जाती है।
  • और, यह मिट्टीयां भारत की दूसरी सबसे प्रमुख मृदा है।
  • इस मिट्टीयों का विकास रवेदार आग्नेय चट्टानें,
  • तथा, कुडप्पा और विन्ध्यन बेसिनो और धारवाड़ शैलों की अवसादी शैलों के ऊपर हुआ है।
  • और, देखा जाये तो लाल मिट्टीयों का विस्तार,
  • भारत में लगभग 6 लाख वर्ग किमी. तक है।
  • इसीलिए इस मिट्टी के प्रकार मुक्ख रूप से,
  • पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीशा, आंध्रप्रदेश,
  • तमिलनाडु, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड क्षेत्र में पाई जाती है।

Black or Regur soils | काली / रेगुर मिट्टीयां

  • दोस्तों अब बात करते है काली या रेगुर मिट्टी के बारे में,
  • काली मिट्टी / मृदा भारत की तीसरी सबसे प्रमुख मृदा है।
  • और, इस मृदा का निर्माण ज्वालामुखी विस्फ़ोट के दौरान,
  • निकालने वाली लावा पदार्थों के विखण्डन से हुआ है।
  • और, इस मृदा का विकास महाराष्ट्र के दक्कन ट्रैप के उत्तरी पच्छिमी क्षेत्र में हुआ है।
  • इसके अलावा, यह काली मिट्टी तेलंगाना, तमिलनाडु,
  • कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के पठार आदि में भी पाई जाती है।
  • और, यह मृदा कपास की खेती के लिए उपजाऊ होते है।
  • इसीलिए इसे कपासी मिट्टी या रेगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
  • और, उत्तर प्रदेश में इस मिट्टी को करेल मिट्टी भी कहा जाता है।
  • इसके साथ इस मिट्टी को उष्ण कटिबंधीय चेरनोजम मिट्टी,
  • और, ट्रॉपिकल ब्लैक अर्थ के नाम से भी जाना जाता है।
  • और, इस मिट्टी का विस्तार भारत में लगभग 5.30 लाख वर्ग किमी. तक है।
  • तथा, इस मिट्टी में अल्युमीनियम, मैगनीशियम,
  • चुना, और कैल्शियम आदि खनिजों की मात्रा सर्वाधिक पाया जाता है।
  • तथा, इस मिट्टी में नाइट्रोज़न, फास्फोरस एवं जैविक पर्दार्थो की कमी होती है।
  • इसके साथ इस मिट्टी / मृदा में जल धारण करने की क्षमता,
  • सबसे अधिक होने के कारन यह मिट्टी चिपचिप होती है।
  • परन्तु सूखने पर यह मिट्टी में दरारें पड़ जाती है।
  • दोस्तों इस मिट्टी में उर्वरता अधिक होती है,
  • जिसके कारन इस मिट्टी में सोयाबीन, सफोला,
  • चना और तलहन मोटे अनाजों जैसी खेती होती है।
Description of Laterite soils in Indian soil types | लेटराइट मिट्टीयां
  • लेटराइट मृदा का विकाश उच्च तापमान एवं भारी वर्षा क्षेत्रों में होती है।
  • और, यह मिट्टी आम तौर पर लाल रंग की होती है।
  • तथा, यह मिट्टी उच्च तापमान में आसानी से पनपने वाले,
  • जीवाणु ह्यूमस की मात्रा को भी कम कर देती है,
  • जिसके कारन नाइट्रोजन, कैल्शियम और ह्यूमस की मात्रा की कमी इस मिट्टी में होती है।
  • और, भारत में यह मिट्टी लगभग 3.7% की क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
  • तथा, यह मिट्टी असम की पठारी क्षेत्रों, मेघालय की पठार,
  • कर्णाटक, केरल तथा महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • और, रबड़ एवं कॉफ़ी की फसल के लिए यह मिट्टी काफी उपोयगी होती है।
  • इसके साथ इस मिट्टी / मृदा में मुक्ख रूप से,
  • चाय, काजू, आदि की फसलों भी की जाती है।
  • परन्तु कृषि की अपेक्षा में यह मिट्टीयां कम उपजाऊ मृदा श्रेणी में आते है।
  • और, यह मृदा सूखने के बाद बहुत पथरीली हो जाती है।
  • जिसके कारन इसी लेटराइट मिट्टियों को ईंटों की निर्माण के लिए भी उपयोग किये जाते है।
Indian soil types and crops
Indian soil types and crops
Mountain soils | पर्वतीय मिट्टीयां
  • दोस्तों पर्वतीय मिट्टी को वनीय मिट्टी / मृदा भी कहा जाता है।
  • और, भारत में यह मृदा लगभग 2.85 लाख वर्ग किमी. तक फैला हुआ है।
  • इसके साथ, यह मिट्टीयां पर्वतीय क्षेत्रों में ज्यादा पाई जाती है।
  • और, यह मृदायें अविकसित होते है।
  • तथा, इस मिट्टी में कंकड़, पत्थर की मात्रा भी अधिक होती है।
  • तथा, यह मिट्टीयां भारत के उत्तर पूर्वी भाग, जम्मू और कश्मीर,
  • अरुणाचल प्रदेश, हिमालय की पर्वतीय क्षेत्रों,
  • एवं, दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • और, इस प्रकार की मिट्टी का विकास आम तोर पर पर्वतों की ढालों पर होती है,
  • इसीलिए यह मृदा चाय, मसालों, कहवा,
  • आलू और फलों आदि खेती के लिए बहुत उपयोगी होती है।   
  • और, पर्वतीय मिट्टीयां आम तोर पर अम्लीय प्रकृति की होती है,
  • क्यों की इस मिट्टी पर जीवाश्मों की मात्रा अधिक होने के कारन,
  • यहां जीवांश प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
  • इसके अलावा इस मृदा में अपरदन की समस्या के कारन,
  • यह मिट्टी / मृदा पतली परतों के रूप में भी होती है।
Desert soils | मरुस्थलीय मिट्टीयां
  • भारत के पश्चिमी दिशा में मरुस्थलीय मिट्टी पाई जाती है।
  • और, राजस्थान की थार मरुक्षेत्र में,
  • यह मिट्टीयां लगभग 1.45 लाख वर्ग किमी. तक फैली हुई है।
  • इसके अलावा यह मिट्टीयां दक्षिणी पंजाब,
  • पश्चिमी हरियाणा व उत्तरी गुजरात के शुष्क प्रदेशों में भी पाई जाती है।
  • इसके साथ मरुस्थलीय क्षेत्रों में सूर्य की प्रकाश,
  • ज्यादा गिरने के कारन यह क्षेत्र में अत्यधिक बाष्पीकरण होते है।
  • जिसके लिए इस मृदा में कार्बनिक तत्वों की अल्पता होते है,
  • एवं ह्यूमस का अभाव भी पाया जाता है।
  • और, जिस क्षेत्रों में साल में 50 cm. से भी कम बारिश होती है,
  • वहां यह मिट्टीयां पाई जाती है।  
  • इसीलिए मरुस्थलीय मिट्टीयां को अनुर्वर मृदा में रखा जाता है।
  • तथा, इस मृदा में कम जल की आवशक्ता वाली फसलों को उगाया जाता है,
  • जैसे, तिलहन, बाजरा और ज्वार आदि।
  • इसके साथ इस मृदा में लवण व फॉस्फोरस की मात्रा ज्यादा होती है,
  • तथा, जीवांश व नाइट्रोज़न की मात्रा का अभाव पाया जाता है।
Saline / Alkaline soils | लवणीय / क्षारीय मिट्टीयां
  • लवणीय / क्षारीय मिट्टी को चोपन, कल्लर, थूर,
  • रेह और ऊसर के नाम से भी जाना जाता है।
  • और, यह मिट्टीयां भारत के महाराष्ट्र, पंजाब,
  • हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पाई जाती है।
  • और, इस प्रकार की मिट्टी में लवण की मात्रा ज्यादा होने के कारन,
  • यह मृदा कृषि के लिए अनुर्वर होती है।
  • तथा, इसमें वनस्पति का भी अभाव पाया जाता है।
  • और, लवणीय मृदा का अधिकतर प्रसार,
  • पूर्वी तट के सुन्दरवन डेल्टा क्षेत्र तथा पश्चिमी गुजरात क्षेत्र में होता है।
  • इसके अलावा कच्छ के रन में भी लवणीय मृदा पाया जाता है।
  • जिसके लिए दक्षिण पश्चिम मानसून प्रमुख रूप से उत्तरदाई होते है।
  • और, इस मिट्टी से जुड़ी कृषि की बात करे तो,
  • जिप्सम तथा पाईराइट की प्रयोग से,
  • यह मिट्टी / मृदा को कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
  • और, इसी प्रकार की मिट्टीयों में अमरूद, आंबला,
  • बरसीम और जामुन जैसी फल वृक्ष भी लगाये जाते है।
Marsh soils | दलदली मिट्टीयां
  • दलदली मिट्टी का निर्माण नदियों द्वारा निर्मित,
  • डेल्टाई क्षेत्रों में जल के भराव के कारन होता है।
  • और, यह मिट्टी / मृदा अम्लीय प्रकार के होते है।
  • तथा, इस मृदा में फेरस आयरन होने के कारन,
  • इसका रंग हल्का नीला प्रतीत होता है।
  • इसके साथ भारत में दलदली पीट मृदा वाले क्षेत्रों में ही,
  • मैंग्रोव वनस्पति का विकाश हुआ है।
  • और, मुक्ख रूप से यह सुन्दरवन डेल्टा,
  • उत्तराखंड के अल्मोड़ा तथा केरल के अलप्पूझा जिले में पाई जाती है।
  • और, यह मृदा हल्की उपयुक्त वाली फसलों के लिए भी उपयुक्त होती है।
  • इसके साथ इस मिट्टी में जीवाश्म की मात्रा,
  • तथा, ह्यूमस की मात्रा भी अधिक पाई जाती है।
  • जिसके कारन यह मृदा हल्की काली रंग की होती है।
  • इसके अलावा वर्षा ऋतु में पीट मिट्टीयां पानी में डूब जाती है,
  • और, वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद इस मिट्टी में चावल की फसल की जाती है। 

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